तुम मुझे कह लो कुछ भी
हूँ तो मैं तुम्हारा दर्पण ही
तुम मुझे कहो अच्छा या बुरा
नहीं है मुझे कोई भी परवाह
क्योंकि मैं जो हूँ
तुम वो हो सकते नहीं
जो तुम हो
वो मैं होना चाहतीं नहीं।
अक्सर वो लोग
जो पहनते हैं मुखौटे
मिटा लेते हैं ख़ुद को
ग़ुरूर की तलाश में ।
तुमने मुझ में पाया जो भी
मौजूद है वो सब तुम में ही।
तुम तो मेरे प्रतिबिंब हो
तुम मैले तो मैं मैली
तुम उलझें तो मैं उलझी
जब भी कभी देखो आईना
आँखों में झांकना ना भूलना
अक्सर वो लोग
जिनमें ख़ुद्दारी नहीं होती
जला लेते हैं ख़ुद को
रौशनी की तलाश में ।
अक्सर वो लोग
जो दिखाते हैं दूसरों को नीचा
भस्म कर लेते हैं ख़ुद को
खोखली शान की तलाश में ।
मैं तुम्हारे अंधकार, क्रोध, उदासी
और डर को गले लगाती हूँ ।
जानती हूँ
क्रोध अपने मूल में
परवाह का अनुरोध है।
नफरत अपने मूल में
प्रेम का अनुरोध है।
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