कहाँ हूँ मैं ?
इक दबी चीख में
या
दूसरों की सीख में
हँसी के मुखौटे के पीछे
या
अश्क़ों के समुद्र के नीचे
कहाँ हूँ मैं ?
कुछ अल्फ़ाज़ों में मेरे
या
बद गुमानों में तेरे
गहरी ख़ामोशियों में मेरी
या
चुपके लिखी नज़्मों में मेरी
लगती हैं फाँसी
सिर्फ़ इक जिस्म को
इरादों को फांसी
लगाए है कौन?
मैं हूँ
उज्लत में मेरी
फ़ुर्सत में मेरी
बग़ावत में मेरी
आदमियत में मेरी
मैं हूँ
नादान परिंदों में
तितलियों के रंगों में
खुले आकाश में
बहते आबशारों में
मैं हूँ
हां मैं हूँ।
© प्रिया जैन
इक दबी चीख में
या
दूसरों की सीख में
हँसी के मुखौटे के पीछे
या
अश्क़ों के समुद्र के नीचे
कहाँ हूँ मैं ?
कुछ अल्फ़ाज़ों में मेरे
या
बद गुमानों में तेरे
गहरी ख़ामोशियों में मेरी
या
चुपके लिखी नज़्मों में मेरी
लगती हैं फाँसी
सिर्फ़ इक जिस्म को
इरादों को फांसी
लगाए है कौन?
मैं हूँ
उज्लत में मेरी
फ़ुर्सत में मेरी
बग़ावत में मेरी
आदमियत में मेरी
मैं हूँ
नादान परिंदों में
तितलियों के रंगों में
खुले आकाश में
बहते आबशारों में
मैं हूँ
हां मैं हूँ।
© प्रिया जैन
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