दूज का चाँद बैठा है आसमान पर
प्रात: काल घुटने मोड कर
एक शर्मीली प्रेमिका की तरह
शायद कर रहा है वो इंतजार
किसी पूर्णमासी के आने का
लेकीन वो कितना पूरा लगता है
अधूरा सा मुख ले कर भी
उस मुखौटे के पीछे से दिखता है
उसका वह सांवला रंग
जो झलकाता है उसके होने को
और हम है कि पहने है
अपने मुख पर रंग भरे मुखौटे
कोई सोने का, कोई चाँदी का
कोई पद का, कोई नाम का
ये सब है अहंकार के रूप
देखने में चाहे वो लगे खूसूरत
फिर भी वे है बहुत कुरूप
क्योंकि वह भद्दे हैं
और पाखंडी हैं
अहं और मद और पद की मदीरा में डूबे है
जिन्हें हमें हर दिन संवारना है
कही उनका असली रूप न झांक उठे।
और दिख जाये हमे हमारा होना…..
© प्रिया जैन
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