Pages

Wednesday, February 15, 2023

मैं अपने भीतर

 


 जब उसने कुछ सुनाने को कहा

 मैंने कहा 

 

मैं अपने भीतर ख़ज़ाना लिए चल रही हूँ ।

 शब्द से शब्द टकरा रहें हैं घुँघरुओं से

 बाहर के शोर में संगीत लिए चल रही हूँ ।

 

 कंधों पर दूसरों की आशाओं का बस्ता 

 दिल में अपनो की यादों का गुलदस्ता 

 माथे पर अधूरे बड़े सपनों की शिकन 

 मन में निराधार डर लिए चल रही हूँ ।


जिम्मेदारी और सपनों के मलवे में दबी हुई

सहीं और ग़लत की कश्मकश में डूबी हुई

अपनी डायरी के पन्नों में आस टटोलतीं हुई

अपने अंदर कविताओं का समुद्र लिए चल रही हूँ ।


पंखों को बंद करे, चोंच में रोज़गार का दाना लिए

अज्ञान अपने उद्देश्य से, घोंसले में बैठीं सी

मैं अपने भीतर नीला आकाश लिए चल रही हूँ ।


©️प्रिया जैंन



No comments:

Post a Comment