Thursday, April 1, 2021

मैं हूं इकलौती

आज फिर कुछ लिखने का मन हुआ है

क्या लिखूं फिर कोई कल्पना नहीं है

दिल में दबे अरमानों पर लिखूं या

रंग बिरंगे आसमानों पर

लाल फूल पर पड़ी ओस की बूंदों पर या

बारिश के पानी की छीटों पर

बहते सफ़ेद झरनों के संगीत पर या

गांव के किसी महल के अतीत पर

उगते ढलते सूर्य और चांद के उजाले पर या

ये खूबसूरत श्रृष्टि बनाने वाले पर



लो चिड़िया भी चहक कर बोल उठी

 लिखो कुछ मेरी व्यथा पर भी

 खुले आकाश में हूं उड़ती

सबको नजर आती मेरी आजादी

पर क्या इसी में है मेरी खुशी ?

चलो सुनी मेरे संगर्ष की कहानी

तेज़ तापमान, पानी की कमी

मेरा रोम रोम झंझोर देती 

जलो न आजादी से मेरी

आजादी ले लो, दे दो मुझे मेरी जिंदगी।



बूढ़ी अम्मा आई और बोली

 मेरे पर भी लिखो, कुछ बेटी

चढ़ गई हूं मैं सोने की सीढ़ी 

सब कहते हैं मुझे भाग्यशाली

फिर क्यों हूं मैं इतनी अकेली 

शरीर ना रहा मेरा साथी

खबराता रहता है मेरा जी

लंबी उमर ले लो, लौटा दो मुझे मेरी खुशी



एक सेठ भी आया और बोला

मेरे पर बहुतों ने लिखा

तुम भी कुछ लिखो

मेरे पास है बड़ा बंगला

बड़ी गाड़ी और बड़ा बगीचा 

हर वो समान जो आराम है देता

लेकिन फिर भी हूं मैं बहुत अकेला 

मेरी तन्हाई, मेरा सन्नाटा है मुझे काटता

अहम ले लो, लौटा दो मुझे मेरी शालीनता


मेरे अंदर की आवाज़ बोल उठी

देखो अपने जीवन की खूबसूरती

बंद करो कोशिश दूसरों से बराबरी की

तुम हो जिम्मेदार अपनी शांति की

तुम हो हक्कदार अपनी खुशी की

तुम वो हो, जो तुम बनना हो चाहती

तुम ही सत्य हो, तुम हो ईकलौती



© प्रिया जैन







No comments:

Post a Comment