आज फिर कुछ लिखने का मन हुआ है
क्या लिखूं फिर कोई कल्पना नहीं है
दिल में दबे अरमानों पर लिखूं या
रंग बिरंगे आसमानों पर
लाल फूल पर पड़ी ओस की बूंदों पर या
बारिश के पानी की छीटों पर
बहते सफ़ेद झरनों के संगीत पर या
गांव के किसी महल के अतीत पर
उगते ढलते सूर्य और चांद के उजाले पर या
ये खूबसूरत श्रृष्टि बनाने वाले पर
लो चिड़िया भी चहक कर बोल उठी
लिखो कुछ मेरी व्यथा पर भी
खुले आकाश में हूं उड़ती
सबको नजर आती मेरी आजादी
पर क्या इसी में है मेरी खुशी ?
चलो सुनी मेरे संगर्ष की कहानी
तेज़ तापमान, पानी की कमी
मेरा रोम रोम झंझोर देती
जलो न आजादी से मेरी
आजादी ले लो, दे दो मुझे मेरी जिंदगी।
बूढ़ी अम्मा आई और बोली
मेरे पर भी लिखो, कुछ बेटी
चढ़ गई हूं मैं सोने की सीढ़ी
सब कहते हैं मुझे भाग्यशाली
फिर क्यों हूं मैं इतनी अकेली
शरीर ना रहा मेरा साथी
खबराता रहता है मेरा जी
लंबी उमर ले लो, लौटा दो मुझे मेरी खुशी
एक सेठ भी आया और बोला
मेरे पर बहुतों ने लिखा
तुम भी कुछ लिखो
मेरे पास है बड़ा बंगला
बड़ी गाड़ी और बड़ा बगीचा
हर वो समान जो आराम है देता
लेकिन फिर भी हूं मैं बहुत अकेला
मेरी तन्हाई, मेरा सन्नाटा है मुझे काटता
अहम ले लो, लौटा दो मुझे मेरी शालीनता
मेरे अंदर की आवाज़ बोल उठी
देखो अपने जीवन की खूबसूरती
बंद करो कोशिश दूसरों से बराबरी की
तुम हो जिम्मेदार अपनी शांति की
तुम हो हक्कदार अपनी खुशी की
तुम वो हो, जो तुम बनना हो चाहती
तुम ही सत्य हो, तुम हो ईकलौती
© प्रिया जैन