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Wednesday, February 3, 2021

मुझको वो क्यों बहला ना सका


मधुर  हवा कोई जीवन में चली,


नाच उठा फिर आँगन सारा?


देखो बोझ लिए, जीवन का


नित चल-चल कर अब मैं हारा


जो झूम रहा जीवत कंपन


मुझको क्यों वो बहला न सका।……



प्राणों से  रिश्ता जो क्षण-क्षण


जीवन सांसों का है वो बंधन।।


दिल में जो करता नित क्रंदन,


आंखों से बन बहता अंजन।।


छलता जीवन, नित झूठी मुस्कान


आकर  क्यों मुझे मना न सका।



 यादें की छाया ये धुँधली,


 बिसरे-सपने इन नयनों में


हम अनछुई यादें के परे


उलझ गये अब हम हारे।


 हम को सच लगते है सपने


हम सब सत्‍य से क्‍यो दूर हुए।।


आना मौसम इस यौवन का


फिर क्‍यों मुझको उलझा न सका।



आकर  क्यों मेरे जीवन में,


कोई ख़ुमार भर जाते हो।


 ढूंढ रहा मैं भव सागर में,


न पाते मुझे रुलाते हो।


जीवन की बिखरी कड़ियों को


जो छलती तुमको है पल-पल


अंधकार भरे सूने पथ पर


क्यों कोई दीप जला न सका।।…


© प्रिया जैन

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