Friday, April 10, 2020

कुछ कहना था

कुछ कहना था
बस कह ना सकी
फुट पड़ा है
शब्दों का ज्वालामुखी
बस मैं सह ना सकी

यह जग है झूठा
मेरा गम है सांचा
मरीचिका सी है
रिश्तों की डोरी
तुम्हारी मेरी

कूटनीति खा गई
मेरे अपनों को
और मैं बेबस
लाचार, मूक सी
कहीं खो गई

दूर बैठे समुंदर में
भी तूफान है
रैना कली है
तारे रूठे बैठे है
आसमान खाली है

जो खिड़कियां खुली,
आज़ाद थी
आज घुटन में बंद हो
गई है
सांस मेरी हैरान है
और मन परेशान है

क्या सब बोल दूं?
क्या बोल दूं
तुम सब हो पाखंडी
तुम सब हो रूढ़िवादी
और
मेरी आवश्यकता है
केवल आज़ादी?

क्या मेरा सन्नाटा
क्या मेरी चुप्पी भी है
एक मुखौटा?
क्या मेरे शब्दों
की आज़ादी
होगी मेरी बेक़द्री?
या
खोल देगी सालों
से बंद वो काल कोठरी?

कुछ कहना था
बस कह ना सकी
फूट पड़ा है
शब्दों का ज्वालामुखी
बस मैं सह ना सकी
बस मैं सह ना सकी

© प्रिया जैन












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