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Monday, December 16, 2019

आज ठंड बहुत है

आज ठंड बहुत है
ना तुम हो, ना तुम्हारी बातें है
अब बस लंबी रातें हैं
तेरे दृश्यें हैं और आहटें बहुत है
आज कुछ ठंड बहुत है


चाय पीने की इच्छा बहुत है
तूने समय में मुझे पीछे खीचा बहुत है
मेरे बिस्तर पर सिलवटें बहुत है
सिलवटों में शिकन बहुत है
आज कुछ ठंड बहुत है

बचपना तो पहले भी था
मेरे दिल में अकेलापन बहुत है
आज कुछ लड़कपन बहुत है
तेरी मेरी डोर मजबूत बहुत है
तोड़ना चाहूं भी तो कैसे
उस पर लगा यादों का मोम बहुत है
आज कुछ ठंड बहुत है

रो रो के दिल ज़ार ज़ार हो गया है
तूने ही मुझे कमज़ोर किया है
इस बात का गिला बहुत है
तू तो जल गया
इस डोर को भी जला जाता
इस बात का अफ़सोस बहुत है
आज कुछ ठंड बहुत है

© प्रिया जैन














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