Pages

Wednesday, January 3, 2024

अक्सर वो लोग

 तुम मुझे कह लो कुछ भी 

हूँ तो मैं तुम्हारा दर्पण ही 

तुम मुझे कहो अच्छा या बुरा 

नहीं है मुझे कोई भी परवाह 

क्योंकि मैं जो हूँ 

तुम वो हो सकते नहीं 

जो तुम हो

वो मैं होना चाहतीं नहीं।

अक्सर वो लोग

जो पहनते हैं मुखौटे 

मिटा लेते हैं ख़ुद को

ग़ुरूर की तलाश में ।



तुमने मुझ में पाया जो भी 

मौजूद है वो सब तुम में ही।

तुम तो मेरे प्रतिबिंब हो

तुम मैले तो मैं मैली

तुम उलझें तो मैं उलझी

जब भी कभी देखो आईना 

आँखों में झांकना ना भूलना 

अक्सर वो लोग 

जिनमें ख़ुद्दारी नहीं होती 

जला लेते हैं ख़ुद को

रौशनी की तलाश में ।




अक्सर वो लोग 

जो दिखाते हैं दूसरों को नीचा 

भस्म कर लेते हैं ख़ुद को

खोखली शान की तलाश में ।

मैं तुम्हारे अंधकार, क्रोध, उदासी 

और डर को गले लगाती हूँ ।

जानती हूँ 

क्रोध अपने मूल में 

परवाह का अनुरोध है। 

नफरत अपने मूल में 

प्रेम का अनुरोध है।