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Tuesday, May 11, 2021

इंसानियत कहां है छिपी?

 खोखली हो गई इंसानियत

बिगड़ी बिगड़ी सी है नीयत

जान की भी है अब कीमत


बिक गया है ज़मीर

अब ना बचा फ़कीर 

और न बचा अमीर


ऑक्सीजन बेच रहे व्यापारी

दवाइयों की है काला बाज़ारी

अस्पतालों में है मारा मारी 


जान तो है कांच सी कांची

जगह जगह लाशें बिछी

घर घर में अफरा तफ़री मची


कैसे कर लेते हो 

इंसानियत को शर्मिंदा?

नीयत को गंदा?


कैसे कर लेते हो

प्राणों का व्यापार?

अंतरात्मा को इनकार?


इंसानियत कहां है छिपी?

तू है भी या चल बसी?

तू है भी या चल बसी?


©प्रिया जैन