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Tuesday, October 8, 2019

मैं अमर हूं

कहां ढूंढ रहे हो मुझे तुम?
एक पुतले में?
मैं मौजूद हूं तुम सब में
मैं तो अमर हूं
मैं महान हूं
मुझे रावण कहो
लंकेश्वरण कहो
या कहो दशानन

मैं हूं क्रोध में
मैं हूं मान में
माया में  मैं
लोभ में भी मैं
मुझे जलाकर क्या मिलेगा?
पल भर की खुशियां?
ऐसा करने से मैं मर जाऊंगा?
शायद नहीं
ऐसा कोई मानव नहीं
जो मुझे मार सके
मैं तो अमर हूं
मैं महान हूं
मुझे रावण कहो
लंकेश्वरण कहो
या कहो दशानन

मैं झूठ में, अधर्म में
मैं बुराई में, दोष में
मैं क्लेश में
सकून की तलाश में
मत जलाओ मुझे
मैं तो अमर हूं
मैं महान हूं
मुझे रावण कहो
लंकेश्वरण कहो
या कहो दशानन

अगर वध करना है मेरा
तो मेरे अनगिनत रूपों को मारो
मेरे तो बस दस सिर थे
तुम्हारे अनगिनत चेहरे हो गए हैं
मुझे मुक्ति दे दो
मैं तो जिंदा हूं तुम सब में
मगर तुम सब में कोई
मर्यादा पुरुषोत्तम राम नहीं है
और कैसे हो
कोई सीता भी तो नहीं है
जिसके लिए राम पुनर्जन्म ले सके
देखो एक दूसरे में झांक कर
पाओगे मुझे खुद में


जिंदा हूं, तो क्यों हूं
जिंदा हूं,  तो क्यों हूं
हर पल बस यही चाहता हूं
कि मुझे मोक्ष मिल जाए
जला दो तुम पूर्णत मुझे
मगर ऐसा तभी होगा
जब तुम राम हो जाओ
तुम राम हो जाओ

© प्रिया जैन